हौसला इतना अभी यार नहीं कर पाए ख़ुद को रुस्वा सर-ए-बाज़ार नहीं कर पाए दिल में करते रहे दुनिया के सफ़र का सामाँ घर की दहलीज़ मगर पार नहीं कर पाए हम किसी और के होने की नफ़ी क्या करते अपने होने पे जब इसरार नहीं कर पाए साअत-ए-वस्ल तो क़ाबू में नहीं थी लेकिन हिज्र की शब का भी दीदार नहीं कर पाए ये तो आराइश-ए-महफ़िल के लिए था वर्ना इल्म ओ दानिश का हम इज़हार नहीं कर पाए