एक समुंदर आँसुओं का भर चुका कमरे में वो अपनी बर्बादी का मातम कर चुका कमरे में वो उफ़ ये सन्नाटा ये तारीकी ये तन्हाई का ख़ौफ़ तेरे बिन जीते ही जी है मर चुका कमरे में वो मुझ को कुछ ऐसा लगा कि मर के ज़िंदा हो गया अपने ही साए से जैसे डर चुका कमरे में वो अब न बोलो आप कुछ और ना ही अब बोले कोई वो कभी का मर चुका है मर चुका कमरे में वो उफ़ रे तन्हाई का ये एहसास अपने आप में लाश जैसे आप अपनी धर चुका कमरे में वो ख़ुद-कुशी 'अर्पित' की कोई ज़िक्र के क़ाबिल नहीं जो भी करना था उसे अब कर चुका कमरे में वो