इक शजर है ला-फ़ना जिस की जड़ें हैं संगलाख़ जड़ है ऊपर और है नीचे की जानिब जिस की शाख़ बर्ग जिस के दीद हैं महरम है जिस का दीद-दाँ है सिफ़त जिस का तना जिस से हरी है शाख़ शाख़ जिस की शाख़ों के शगूफ़े हिस्स-ओ-महसूसात हैं बेख़-ए-आवेज़ां का है दाम-ए-अमल दामन फ़राख़ जो शजर है ला-मकानी ग़ैर मुतशक्किल क़दीम क़त्अ करना लाज़मी है जिस की बेख़-ए-संगलाख़ तेग़ से तजरीद के ले काम हो फ़ारिग़-नशीं अस्ल में हो वस्ल हैं सब फ़र-ए-ग़ुन्चा बर्ग-ओ-शाख़ फ़र्ज़ है ये कर अदा-ए-फ़र्ज़ बे-बीम-ओ-रजा देख 'साहिर' सर-ज़मीन-ए-इश्क़ है क्या संगलाख़