मकाँ कहीं तो मुक़र्रर हो ला-मकाँ के लिए निशाँ कहीं तो मुअ'य्यन हो बे-निशाँ के लिए मिला है जिस्म हमें इम्तियाज़-ए-जाँ के लिए बशर वजूद में आया है इम्तिहाँ के लिए निगाह वक़्फ़-ए-जमाल-ओ-ख़याल महव-ए-जलाल रह-ए-फ़ना में हैं दो नक़्श-ए-पा निशाँ के लिए मुहीत-ए-इश्क़ की मौजें हैं इज़तिराब-ओ-सुकूँ कि मद्द-ओ-जज़्र बने बहर-ए-बेकराँ के लिए हुज़ूर-ए-क़ल्ब है सरमाया-ए-हयात-ए-दवाम नफ़स है ख़िज़्र मिरा उम्र-ए-जावेदाँ के लिए मिरी नमाज़ को बहर-ए-वुज़ू है जाम-ए-तुहूर सला-ए-साक़ी-ए-कौसर है बस अज़ाँ के लिए हमारे दिल में यक़ीं को मिली है गुंजाइश कि बस है वुसअत-ए-कौन-ओ-मकाँ गुमाँ के लिए चली जो साहिल-ए-उम्र-ए-रवाँ से कश्ती-ए-तन नफ़स से काम मशिय्यत ने बादबाँ के लिए हुआ ये शो'ला-ज़बानी से शम्अ' की रौशन कि मोम हो हमा-तन आतिशीं बयाँ के लिए मिरी नज़र में है इस्म-ओ-सिफ़त की जल्वागरी ज़बान-ए-हाल है शाहिद मिरे बयाँ के लिए कहा ये रहमत-ए-बारी ने है ये हक़ से बईद कि वक़्फ़ हो कोई जल्वा किसी मकाँ के लिए अयाँ ये हुस्न-ए-ख़ुद-आरा की ख़ुद-नुमाई है कि नूर-ए-ऐन है चश्म-ए-जहानियां के लिए फ़रोग़-ए-इल्म से रौशन है शम-ए-बज़्म-ए-सुख़न सला-ए-आम है यारान-ए-नुक्ता-दाँ के लिए बक़ा-ए-ज़ात में है मा-सिवा फ़ना 'साहिर' ये दिल पे नक़्श है ता'वीज़ हिर्ज़-ए-जाँ के लिए