एक तमाशा ये भी जहाँ में कर जाना अपने बदन से किसी कुएँ को भर जाना बस इक बूँद लहू से सारी फ़ज़ीलत है वर्ना कब ज़िंदा रखता है मर जाना उस को ढूँडने में जब भी रंग भरा हम ने तो इस दिल को भी इक मंज़र जाना अपने सर पर ख़ुद ही सजाना सूरज को और अपनी परछाईं से ख़ुद ही डर जाना ख़ाक को क्यूँ चमकाया लहू की रौशनी से दुनिया को क्या सोच समझ कर घर जाना एक ज़रा सी अना पे बस हम ज़िंदा हैं वर्ना 'तूर' बहुत आसाँ है मर जाना