एक था शख़्स ज़माना था कि दीवाना बना एक अफ़्साना था अफ़्साने से अफ़्साना बना इक परी-चेहरा कि जिस चेहरे से आईना बना दिल कि आईना-दर-आईना परी-ख़ाना बना ख़ेमा-ए-शब में निकल आता है गाहे गाहे एक आहू कभी अपना कभी बेगाना बना है चराग़ाँ ही चराग़ाँ सर-ए-आरिज़ सर-ए-जाम रंग-ए-सद-जल्वा-ए-जानाना सनम-ख़ाना बना एक झोंका तिरे पहलू का महकती हुई याद एक लम्हा तिरी दिलदारी का क्या क्या न बना