करें कह दो मुँह बंद ग़ुंचे सब अपना By Ghazal << दिल सँभलता नहीं सँभाले से एक था शख़्स ज़माना था कि ... >> करें कह दो मुँह बंद ग़ुंचे सब अपना मैं लिखती मुअम्मा हूँ उस के वहाँ का जिसे लोग कहते हैं ख़ुर्शीद-ए-रख़्शाँ शरारा है इक मेरे सोज़-ए-निहाँ का मिरी आह की कार-फ़रमाइयाँ हैं पता ला-मकाँ तक नहीं आसमाँ का Share on: