एक तुम ही नहीं दुनिया में जफ़ाकार बहुत दिल सलामत है तो दिल के लिए आज़ार बहुत हाए क्या चीज़ है महरूमी-ओ-ग़म का रिश्ता मिल गए ज़ीस्त के हर मोड़ पे ग़म-ख़्वार बहुत याद-ए-अहबाब की ख़ुशबू से महकती शामें कुछ कहो होती हैं कम्बख़्त दिल-आज़ार बहुत इश्क़-ए-आवारा कहाँ क़ैद-ए-दर-ओ-बाम कहाँ बे-नवाओं के लिए साया-ए-दीवार बहुत दिल की रफ़्तार बदल जाती थी आवाज़ के साथ याद आता है वो पैराया-ए-गुफ़्तार बहुत एक दिन वक़्त बताएगा जुनूँ की अज़्मत यूँ तो हम लोग हैं रुस्वा सर-ए-बाज़ार बहुत वो कशाकश है कि जीना भी है दूभर 'ताबाँ' इश्क़ मासूम बहुत हुस्न फ़ुसूँ-कार बहुत