फ़सील-ए-शहर को जब तक गिरा नहीं देंगे हमें ये लोग कभी रास्ता नहीं देंगे तमाम उम्र जो चेहरे को अपने पढ़ न सके हम उन के हाथों में अब आइना नहीं देंगे घुटन हो ऐसी कि तुम खुल के साँस ले न सको तुम्हें हम इस से ज़ियादा सज़ा नहीं देंगे तुझे डुबोएँगे ख़ुद तेरे हाशिया-बरदार हम अपनी राह से तुझ को हटा नहीं देंगे ये बज़्म-ए-शेर-ओ-अदब कब किसी की है मीरास जो नस्ल गूँगी हो हम जाएज़ा नहीं देंगे वो जिन के नाम से हम ज़हर पी गए 'नय्यर' हम उन के हक़ में कभी बद-दुआ' नहीं देंगे