फ़ुग़ान-ए-रूह कोई किस तरह सुनाए उसे कि ज़ख़्म ज़ख़्म बदन तो नज़र न आए उसे न देखने की सज़ा-वार जिस को आँख हुई कोई पियासा भला हाथ क्या लगाए उसे सुरूर लज़्ज़त-ए-हासिल का कुछ सिवा होगा चलन अता का अगर ख़ुसरवाना आए उसे मिरे लहू में उतर आएँगे नए मौसम चुनी है दिल में जो दीवार सी वो ढाए उसे खुला न उस पे कभी मेरी आँख का मंज़र जमी है आँख में काई कोई दिखाए उसे वो रौशनी का हवाला वो रंग-ओ-बू का सफ़ीर मरी जमाल-पसंदी कहीं से लाए उसे फ़रोग़-ए-हुस्न शगुफ़्त-ए-गुल ओ रम-ए-शबनम फ़रेब कैसे ये 'शाहिद' कोई सुझाए उसे