नासेहा फ़ाएदा क्या है तुझे बहकाने से कार-ए-हुश्यार कहीं भी हुआ दीवाने से न ग़रज़ काबे से मतलब है न बुत-ख़ाने से है फ़क़त ज़ौक़ मुझे यार के घर जाने से वो उठा क्या कि अब्र-ए-करम पहलू से चश्म से चश्म बहे शोख़ के उठ जाने से सोज़िश-ए-दिल न यक़ीं हो तो जिगर चीर के देख आबले लाखों पड़े तेरे ही ग़म खाने से