फ़ैसले की ये घड़ी है By Ghazal << नम हुई चश्म-ए-वफ़ा राज़-ए... चराग़ ले के हथेली पे चल स... >> फ़ैसले की ये घड़ी है ट्रेन पटरी पर खड़ी है दूर वाँ जो झोंपड़ी है शह की आँखों में अड़ी है रात हम को खा रही है तुम को सोने की पड़ी है हम तिरी ख़ातिर रुके हैं मौत तो आ कर खड़ी है वक़्त भी अच्छा नहीं है हाथ में टूटी घड़ी है Share on: