फ़ितरत पे उस की मैं हुआ हैरान ज़ियादा इंसाँ की शक्ल में मिले शैतान ज़ियादा मुझ से तुम्हारे हुस्न की तहसीं न हो सकी इतनी सी बात पे उठा तूफ़ान ज़ियादा अच्छा था तुझ से मेरी शनासाई नहीं थी ऐ ना-शनास मैं हूँ परेशान ज़ियादा बारिश है तेज़ छत है शिकस्ता जगह जगह इस पे हमारे घर में हैं मेहमान ज़ियादा शायद नहीं है इस के सिवा मुझ में कुछ हुनर बस आदमी की है मुझे पहचान ज़ियादा चेहरा तुम्हारा जैसे कोई मो'तबर किताब पुख़्ता हुआ है और भी ईमान ज़ियादा 'आतिश' नहीं है ज़िक्र उख़ुव्वत का किस जगह बस पढ़ते जाइए मियाँ क़ुरआन ज़ियादा