फ़ैज़ पहुँचे हैं जो बहारों से पूछते क्या हो दिल-निगारों से आशियाँ तो जला मगर हम को खेलना आ गया शरारों से क्या हुआ ये कि ख़ूँ में डूबी हुई लपटें आती हैं लाला-ज़ारों से उन में होते हैं क़ाफ़िले पिन्हाँ दिल-शिकस्ता न हो ग़ुबारों से है यहाँ कोई हौसले वाला कुछ पयाम आए हैं सितारों से हम से मेहर-ओ-वफ़ा की बात करो होश की बात होशयारों से कू-ए-जानाँ हो दैर हो कि हरम कब मफ़र है यहाँ सहारों से