ख़याल-ए-यार का सिक्का उछालने में गया जुनूँ ख़रीता-ए-ज़र था सँभालने में गया लहू जिगर का हुआ सर्फ़-ए-रंग-ए-दस्त-ए-हिना जो सौदा सर में था सहरा खंगालने में गया गुरेज़-पा था बहुत हुस्न-पारा-ए-हस्ती सो अर्सा उम्र का ज़ंजीर डालने में गया निहाल यादों की चाँदी में शब तो दिन सारा किसी के ज़िक्र का सोना उछालने में गया थी दस्त-गाह बयाँ पर मगर कमाल-ए-हुनर ग़म-ए-हयात के क़िस्सों को टालने में गया