फ़ज़ा में कैसी उदासी है क्या कहा जाए अजीब शाम ये गुज़री है क्या कहा जाए कई गुमान हमें ज़िंदगी पे गुज़रे हैं ये अजनबी है कि अपनी है क्या कहा जाए वो धूप दुश्मन-ए-जाँ थी सो थी ख़मोश थे हम ये चाँदनी हमें डसती है क्या कहा जाए यहाँ भी दिल पे उदासी का छा रहा है धुआँ ये रंग ओ नूर की बस्ती है क्या कहा जाए कोई पयाम हमारे लिए नहीं न सही मगर सदा तो उसी की है क्या कहा जाए हमारे अहद के उलझे हुए सवालों का जवाब सिर्फ़ ख़मोशी है क्या कहा जाए ज़बाँ पे शुक्र ओ शिकायत के सौ फ़साने हैं मगर जो दिल पे गुज़रती है क्या कहा जाए तमाम शहर को क्यूँ चुप लगी है क्या जानें घुटन दिलों में ये कैसी है क्या कहा जाए शनाख़्त दोस्त न दुश्मन की मो'तबर 'मख़मूर' हर एक शक्ल ही धुँदली है क्या कहा जाए