फ़ाख़्ताओं के बिखेरे हुए पर ले जाओ ये ज़रूरी है यही रख़्त-ए-सफ़र ले जाओ और तो क्या ही बचा आँख के वीराने में है कोई ख़्वाब सा इक रात-बदर ले जाओ ऐ भटकने के इरादे से निकलने वालो हम से कुछ दश्त-नवर्दी का हुनर ले जाओ एक कश्ती बड़ी इतराए है दरिया ऊपर उस के गालों में जो पड़ते हैं भँवर ले जाओ बैठे बैठे मैं कहीं और चला जाता हूँ यार तुम अपनी मोहब्बत का असर ले जाओ हम ने झुक कर नहीं आने की क़सम खाई है पहले माथे से उलझता हुआ दर ले जाओ हुक्म-ए-सुल्तान की तामील तुम्हारे लिए है मैं नहीं जा रहा चाहो तो ये सर ले जाओ