हसीन है तो रहे सुब्ह तेरी पर नहीं कर मैं शब-परस्त हूँ मुझ पर अभी सहर नहीं कर जो राह मैं ने चुनी है कहीं नहीं जाती उमीद-ए-नाज़ मुझे अपना हम-सफ़र नहीं कर तमाश-बीं मिरे होने के मुन्हरिफ़ हो जाएँ अब इस क़दर भी कहानी को मुख़्तसर नहीं कर तू चाँदनी के तरन्नुम से खिलने वाला बदन मैं बे-चराग़ ठिकाना हूँ मुझ को घर नहीं कर अभी गुमान कई मरहलों से गुज़रेगा ऐ बद-दुआ'-ए-तज़ब्ज़ुब-दिलाँ असर नहीं कर ये बढ़ते साए शिकारी हैं मेरे सूरज के ख़ुदाया शाम अब इतनी भी मो'तबर नहीं कर दरीचे हैं कोई आँखें ख़ुदाई दुनिया की इन्हीं से हो के गुज़र और कोई दर नहीं कर