फल है उस बुत की आश्नाई का मुझ को दावा है अब ख़ुदाई का न लड़ाओ नज़र रक़ीबों से काम अच्छा नहीं लड़ाई का आसमाँ पर नहीं हिलाल नुमूद न'अल है तेरी ज़ेरपाई का गुल में थी इस क़दर कहाँ सुर्ख़ी अक्स है पंजा-ए-हिनाई का किस सितमगर से तू ने ऐ काफ़िर तर्ज़ सीखा है दिलरुबाई का चादर-ए-आसमान हाज़िर हो तू जो अस्तर करे रज़ाई का वक़्त क्या आ गया है सद-अफ़्सोस भाई दुश्मन हुआ है भाई का गो बरहमन पिसर वो क़ातिल है दिल मिला है मगर क़साई का कुछ मिरा ही नहीं वो बुत माबूद ब-ख़ुदा है ख़ुदा ख़ुदाई का 'सेहर' क्या उस ने कर दिया जादू मुझ को दावा था पारसाई का