फ़लक पे चाँद सितारे कुछ और कहते हैं मगर ज़मीं के नज़ारे कुछ और कहते हैं तिरी हबीब अदाएँ कुछ और कहती हैं अदू को तेरे इशारे कुछ और कहते हैं उधर उरूज पे पहुँची है गर्मी-ए-बाज़ार इधर हमारे ख़सारे कुछ और कहते हैं जहाँ पे तुम ने मोहब्बत से हाथ रक्खा था वहीं पे ज़ख़्म हमारे कुछ और कहते हैं वो कह रहे हैं कि दोनों तरफ़ है ख़ुश-हाली नदी के दोनों किनारे कुछ और कहते हैं