हैरत-मआ'ब हूँ कि ये क्या देखता हूँ मैं ऐ साहिब-ए-जमाल तिरा आइना हूँ में रंग-ए-तिलिस्म-आलम-ए-तस्वीर है हयात और इस निगार-ख़ाने में गुम हो चुका हूँ मैं आँखों में इक चराग़-ए-तमन्ना लिए हुए तारीकियों के शहर में क्या ढूँढता हूँ मैं आतिश-मिज़ाज था वो सो अब ख़ाक हो चुका मैं ख़ाकसार था सो नुमू पा रहा हूँ मैं फ़िक्र-ए-रसा में उम्र मिरी सर्फ़ हो गई अब सोचने लगा हूँ बहुत सोचता हूँ मैं