फ़न के शजर पर फल जो लगे हैं By Ghazal << ब-राह-ए-रास्त नहीं फिर भी... ये ग़लत है ये साल ठीक नही... >> फ़न के शजर पर फल जो लगे हैं उन में ज़्यादा तर कच्चे हैं कैसा ये कल-जुग आया है लोग पड़ोसी से डरते हैं झूट है सब आए थे फ़सादी ये तो करिश्मे वर्दी के हैं कितने दानिश-वर हो भय्या जानने वाले जान रहे हैं चीख़ के लहजा बोल रहा है शेर 'शुहूद' आफ़ाक़ी के हैं Share on: