ऐ अजल ऐ जान-ए-'फ़ानी' तू ने ये क्या कर दिया मार डाला मरने वाले को कि अच्छा कर दिया जब तिरा ज़िक्र आ गया हम दफ़अतन चुप हो गए वो छुपाया राज़-ए-दिल हम ने कि इफ़शा कर दिया किस क़दर बे-ज़ार था दिल मुझ से ज़ब्त-ए-शौक़ पर जब कहा दिल का किया ज़ालिम ने रुस्वा कर दिया यूँ चुराईं उस ने आँखें सादगी तो देखिए बज़्म में गोया मिरी जानिब इशारा कर दिया दर्दमंदान-ए-अज़ल पर इश्क़ का एहसाँ नहीं दर्द याँ दिल से गया कब था कि पैदा कर दिया दिल को पहलू से निकल जाने की फिर रट लग गई फिर किसी ने आँखों आँखों में तक़ाज़ा कर दिया रंज पाया दिल दिया सच है मगर ये तो कहो क्या किसी ने दे के पाया किस ने क्या पा कर दिया बच रहा था एक आँसू-दार-ओ-गीर-ए-ज़ब्त से जोशिश-ए-ग़म ने फिर इस क़तरे को दरिया कर दिया 'फ़ानी'-ए-महजूर था आज आरज़ू-मंद-ए-अजल आप ने आ कर पशीमान-ए-तमन्ना कर दिया