फ़न्न-ए-ग़ज़ल-आराई दे लहजे को सच्चाई दे ऊँची छत के सदक़े में फ़िक्रों को गहराई दे दुनिया है जंगल का सफ़र लछमन जैसा भाई दे दाता तेरी मर्ज़ी है ग़म दे या रुस्वाई दे वो हर मौसम पर क़ादिर लौ दे या पुरवाई दे सोने का बाज़ार गिरा मिट्टी को महँगाई दे मंज़र मंज़र शे'र उगा लफ़्ज़ों को बीनाई दे जागती आँखें हँसती हैं ख़्वाबों को सच्चाई दे नींद खुले तो कानों में तेरा नाम सुनाई दे मौला अपने 'तारिक़' को नेकी दे अच्छाई दे