फ़क़त मैं क्यों रहूँ रुस्वा तिरी रुस्वाई भी तो हो सितमगर तेरी महफ़िल में शब-ए-तन्हाई भी तो हो तुझे पाने की ख़्वाहिश में जो रख दे जान भी गिरवी ज़माने में मिरे जैसा कोई सौदाई भी तो हो मैं तुम को बेवफ़ा कहता हूँ तो इस में बुरा क्या है ये माना मैं कि तुम अपने हो मगर हरजाई भी तो हो मैं कैसे डूब सकता हूँ वफ़ा के ख़ुश्क दरिया में तिरे दरिया-ए-उल्फ़त में कोई गहराई भी तो हो शब-ए-फ़ुर्क़त का हर लम्हा सितारे गिन के काटा है बिछड़ के तुझ से इक पल को हमें नींद आई भी तो हो मैं कैसे मान लूँ तू हिज्र में रहता है नम-दीदा तिरी आवाज़ मेरी तरह से भर्राई भी तो हो मसर्रत के तराने क्या सुनाएँ साज़-ए-ग़म पर हम ख़ुशी के गीत गाने के लिए शहनाई भी तो हो 'हिलाल' अपने मुक़द्दर में नहीं था वस्ल-ए-जानाना दुआ हम ने बहुत की थी मगर बर आई भी तो हो