फ़र्द-ए-इसयाँ को वो सियाही दे जिस की वो ज़ुल्फ़ भी गवाही दे बे-अमाँ नीम-जाँ हूँ मेरी जाँ मुझ को आग़ोश-ए-जाँ-पनाही दे अपनी ज़ुल्फ़ों के साए में मुझ को एक शब की सितारा-जाही दे दिल के उजड़े नगर को कर आबाद इस डगर को भी कोई राही दे मैं ने तामीर क़स्र-ए-शौक़ किया तू इसे मुज़्दा-ए-तबाही दे बख़्शने वाले गुल-रुख़ों को जमाल मुझ को सामान-ए-ख़ुश-निगाही दे मैं असीर-ए-गुमान-ए-ज़ुल्मत हूँ ए'तिमाद-ए-सहर-ए-निगाही दे मुजरिम-ए-इश्क़ हूँ मुझे 'सहबा' जो सज़ा दे वो बे-गुनाही दे