जब वाहिमे आवाज़ की बुनियाद से निकले घबराए हुए हम सुख़न-आबाद से निकले सम्तों का तअय्युन तो सितारों से हुआ है लेकिन ये सितारे मिरी फ़रियाद से निकले मैं बैठ गया ख़ाक पे तस्वीर बनाने जो किब्र थे मुझ में वो तिरी याद से निकले ख़ुद को मैं भला ज़ेर-ए-ज़मीं कैसे दबाता जितने भी खंडर निकले वो आबाद से निकले दिल पहुँचा अचानक ही तयक़्क़ुन की फ़ज़ा तक सब वहम-ओ-गुमाँ इश्क़ की अस्नाद से निकले मैं दर्स उसे अब कोई देता भी तो कैसे पहले से उसे सारे सबक़ याद से निकले