फ़रेब ग़म ही सही दिल ने आरज़ू कर ली बुरा ही क्या है अगर तेरी जुस्तुजू कर ली ग़लत है जज़्बा-ए-दिल पर नहीं कोई इल्ज़ाम ख़ुशी मिली न हमें जब तो ग़म की ख़ू कर ली बिठा के सामने तुम को बहार में पी है तुम्हारे रिंद ने तौबा भी रू-ब-रू कर ली वफ़ा के नाम से डरता हूँ ऐ शह-ए-ख़ूबाँ तुम आए भी तो नज़र जानिब सुबू कर ली कहाँ से आएँगे अंदाज़ बे-पनाही के अभी से जेब-ए-तमन्ना अगर रफ़ू कर ली ज़माना दे न सका फ़ुर्सत-ए-जुनूँ 'अंजुम' बहुत हुआ तो घड़ी भर को हा-ओ-हू कर ली