फ़रेब-ए-ख़ूबी-ए-नैरंग देखने के लिए निकल पड़ा हूँ तिरे संग देखने के लिए तअ'स्सुबात के चेहरे पे अब है ख़ुश-हाली लहू के रंग को बे-रंग देखने के लिए ज़रा शुऊ'र की आँखें तो खोलिए साहब कमाल-ए-ज़ब्त का आहंग देखने के लिए निगार-ख़ाना-ए-फ़न के जमाल की सौगंध मैं आ गया हूँ तिरे ढंग देखने के लिए तअ'ल्लुक़ात का लोहा तो गल चुका होगा पलट के आए हो अब ज़ंग देखने के लिए