फ़रियाद भी है सू-ए-अदब अपने शहर में हम फिर रहे हैं मोहर-ब-लब अपने शहर में अब क्या दयार-ए-ग़ैर में ढूँडें हम आश्ना अपने तो ग़ैर हो गए सब अपने शहर में अब इम्तियाज़-ए-दुश्मनी-ओ-दोस्ती किसे हालात हो गए हैं अजब अपने शहर में जो फूल आया सब्ज़ क़दम हो के रह गया कब फ़स्ल-ए-गुल है फ़स्ल-ए-तरब अपने शहर में जो राँदा-ए-ज़माना थे अब शहरयार हैं किस को ख़याल-ए-नाम-ओ-नसब अपने शहर में इक आप हैं कि सारा ज़माना है आप का इक हम कि अजनबी हुए अब अपने शहर में 'ख़ातिर' अब अहल-ए-दिल भी बने हैं ज़माना-साज़ किस से करें वफ़ा की तलब अपने शहर में