फ़रोग़-ए-सोज़िश-ए-हिन्दोस्ताँ हूँ मज़ाक़-ए-हिम्मत-ए-दर्द-ए-जहाँ हूँ ग़म-ए-आलम में गरचे नीम-जाँ हूँ जहाँ में बाइ'स-ए-ज़ौक़-ए-जहाँ हूँ अज़ादार-ए-ग़म-ए-इंसाँ हुआ हूँ मैं शम्अ'-ए-कुश्ता-ए-ग़म का धुआँ हूँ हर-इक के ग़म में ऐसा खो गया हूँ मियान-ए-शम्अ'-ए-हस्ती सोज़-ए-जाँ हूँ यहाँ पर मश्रिक-ओ-मग़रिब कहाँ हैं यही अब सोचता हूँ मैं कहाँ हूँ जिन्हें मंज़िल ग़ुबार-ए-कारवाँ है मैं ऐसे क़ाफ़िलों के दरमियाँ हूँ मिरी मिट्टी में भी ज़ौक़-ए-वतन है मैं मिट कर भी शरीक-ए-कारवाँ हूँ जहाँ के ज़ौक़ में बे-ख़ुद हुआ हूँ नक़ीब-ए-ज़ौक़ फ़र्दा-ए-जहाँ हूँ जहाँ इम्कान-ए-हद-बंदी नहीं है वरा-ए-हद्द-ए-इम्कान-ए-जहाँ हूँ