रंग देखा तिरी तबीअ'त का हो चुका इम्तिहाँ मोहब्बत का यही नक़्शा रहा जो फ़ुर्क़त का बुत बना लेंगे तेरी सूरत का न मिलो तुम गले रक़ीबों से ख़ून होता है मेरी हसरत का तेरी रफ़्तार ने निशान दिया नाम सुनते थे हम क़यामत का देखता हूँ परी-जमालों को मुझ को लपका है अच्छी सूरत का मिलती-जुलती है ज़ुल्फ़-ए-शब-गूँ से क्या मुक़द्दर है शाम-ए-फ़ुर्क़त का तेरी ठोकर के आगे ओ ज़ालिम पाँव जमता नहीं क़यामत का वो मिरे हाल पर तिरे अल्ताफ़ वो ज़माना तिरी मोहब्बत का सुन के दुश्मन की बात पी जाऊँ मुक़तज़ा ये नहीं है ग़ैरत का वो बिगड़ते हैं मुझ से बन बन कर रंग-ए-रुख़ रंग है तबीअत का जानते हैं 'फ़रोग़' को हम भी इक यही शख़्स है मुरव्वत का