किसी सूरत अदू की तर्क-ए-उल्फ़त हो नहीं सकती

किसी सूरत अदू की तर्क-ए-उल्फ़त हो नहीं सकती
हमारे हाल पर तेरी इनायत हो नहीं सकती

कभी तेरे सिवा दिल दूसरे पर आ नहीं सकता
किसी पर अब मिरी माइल तबीअत हो नहीं सकती

बनी है मोहर-ए-लब पैहम मोहब्बत उस सितमगर की
बयाँ अब दास्तान-ए-दर्द-ए-फ़ुर्क़त हो नहीं सकती

इलाही मेरा दिल उस संग-दिल का दिल तो बन जाए
मिरी तक़दीर गर दुश्मन की क़िस्मत हो नहीं सकती

ये हो सकता है दुनिया भर को छोड़ूँ तेरी ख़ातिर से
रक़ीब-ए-रू-सियह की मुझ से मिन्नत हो नहीं सकती

तसव्वुर में भी तुम बार-ए-नज़ाकत से नहीं आते
तुम्हारे वस्ल की अब कोई सूरत हो नहीं सकती

ख़ुदा की शान है इश्क़-ए-अदू में रोते फिरते हैं
जो कहते थे कभी तासीर-ए-उल्फ़त हो नहीं सकती

घुलाया ज़ोफ़ ने ऐसा फ़िराक़-ए-यार में मुझ को
तसव्वुर में भी क़ाएम मेरी सूरत हो नहीं सकती

हिजाब आता है तुझ को दुश्मन-ए-मेहर-ओ-वफ़ा कहते
किसी पर्दे में अब तेरी शिकायत हो नहीं सकती

'फ़रोग़'-ए-नय्यर-ए-तक़दीर ज़ौ-बख़्श-ए-तमन्ना है
शब-ए-वस्ल-ए-सितमगर शाम-ए-फ़ुर्क़त हो नहीं सकती


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