मिरी ख़ामुशी में भी ए'जाज़ आए कहीं से कोई मुझ को आवाज़ आए वो चेहरा न जाने कहाँ खो गया है वो जिस से लहू में तग-ओ-ताज़ आए निकाला किसी ने न पत्थर से बाहर मिरे शहर में रोज़ बुत-साज़ आए उड़े नीली नीली रगों से निकल कर मिरे दर्द में ज़ौक़-ए-परवाज़ आए सज़ा बे-गुनाही की मैं काटती हूँ मुझे ज़िंदगी के न अंदाज़ आए मोहब्बत ऐ दीवानी पागल मोहब्बत हमें छोड़ दे देख हम बाज़ आए मिरी तिश्ना-कामी सवाली है जिस की कभी तो वो 'नैनाँ' ब-सद-नाज़ आए