फ़स्ल-ए-गुल आई अजब रंग है मयख़ाने का हुस्न देखे कोई अब शीशे का पैमाने का नासेहो फ़र्ज़ अदा हो चुका समझाने का छेड़ना ठीक नहीं हर घड़ी दीवाने का कौन उफ़्तादा पड़ी ऐ दिल-ए-बेताब नई कुछ तो मालूम हो बाइ'स तिरे घबराने का जुस्तुजू ने तिरी इक जा कहीं रहने न दिया मुझ को का'बे ही का रक्खा न सनम-ख़ाने का ख़ाना-ए-दिल को ग़म-ए-यार ने आबाद किया कौन पुरसाँ था इस उजड़े हुए काशाने का दिल को हो जाता है बावर कि वो सच कहते हैं ऐसा अंदाज़ है कुछ उन के क़सम खाने का चुपके पी लेते हैं इंकार नहीं करते हैं शैख़ जी सुनिए अदब है यही मयख़ाने का क्या मज़ेदार थी उल्फ़त की कहानी मेरी सुनने वाला न मिला कोई इस अफ़्साने का मंज़िल-ए-इश्क़ ये है ख़ूब समझ ले ऐ दिल आसरा है यहाँ अपने का न बेगाने का फ़िक्र लाहक़ है दम-ए-मर्ग ये वहशी को तिरे जा-नशीं किस को किया जाएगा वीराने का ताज़गी रूह में चेहरे पे बशाशत आई वाह क्या कहना छलकते हुए पैमाने का रोज़ रौशन हुआ दुनिया में उजाला फैला रंग बदला न मगर मेरे सियह-ख़ाने का लाग की आग ही कम्बख़्त बुरी होती है एक अंजाम हुआ शम्अ का परवाने का जोश वो बादा-ए-गुलगूँ का वो क़ुलक़ुल की सदा लब तक आना वो छलकते हुए पैमाने का उन की तस्वीर-ए-जुनूँ-ख़ेज़ का कुछ ज़िक्र नहीं नाम बदनाम ज़माने में है दीवाने का सुब्ह तक जल चुके जाँबाज़-ए-मोहब्बत दोनों शम्अ को रोएँ कि मातम करें परवाने का उम्र इतनी तो कटी बादा-कशी में 'इशरत' अब कहाँ जाएँगे दर छोड़ के मयख़ाने का