फ़स्ल जो चाहें काटना बो भी नहीं सकते और ये लम्हे राएगाँ खो भी नहीं सकते अब तो हँसी आ जाती है जब हो ये ध्यान कि हम रोने वाली बात पर रो भी नहीं सकते ख़्वाबों के सब क़ाफ़िले दिन के सफ़र पर हैं शब को लम्बी तान कर सो भी नहीं सकते दिल से आख़िर धो चलें गर्द-ए-कुदूरत क्यूँ जब हम तेरा आइना हो भी नहीं सकते कोई हमें पहचान ले यूँ तो मुश्किल है लेकिन हम इस भीड़ में खो भी नहीं सकते उस के करम की बारिशें यूँ तो बरसती हैं दाग़ कुछ ऐसे हैं कि हम धो भी नहीं सकते