फ़स्ल-ए-गुल आते ही वहशत हो गई By Ghazal << पहले की ब-निसबत है मुझे क... फूल पत्थर की चटानों पे खि... >> फ़स्ल-ए-गुल आते ही वहशत हो गई फिर वही अपनी तबीअत हो गई क्या बताऊँ किस तरह दिल आ गया क्या कहूँ क्यूँ कर मोहब्बत हो गई देखिए पुख़्ता-मिज़ाजी यार की हो गई जिस पर इनायत हो गई इंतिहा-ए-ना-उमीदी देखिए जो तमन्ना थी वो हसरत हो गई Share on: