पहले की ब-निसबत है मुझे काम ज़ियादा दिल को है मगर ख़्वाहिश-ए-आराम ज़ियादा नाकाम रही शायरी जिन पेश-रवों की देते हैं अज़ीज़ों को वो पैग़ाम ज़ियादा कम-कोश थे कज अपनी कुलह रख नहीं पाए बाग़ी न बने और हुए बदनाम ज़ियादा कुछ हारे हुए बैठ के अब सोच रहे हैं आग़ाज़ क्या कम हुआ अंजाम ज़ियादा दुनिया से तवक़्क़ो' नहीं कुछ दाद-ओ-सितद की ख़ूबाँ को सदा देती है दुश्नाम ज़ियादा