फ़स्ल-ए-गुल देख के अफ़्ज़ूँ हुई वहशत अपनी ले चले देखिए किस जा मुझे क़िस्मत अपनी गो मुझे ज़ोफ़ ने मजबूर किया था लेकिन मंज़िल-ए-इश्क़ में काम आ गई हिम्मत अपनी तू ही इंसाफ़ से कह दे कि ये पर्दा क्या है क्यूँ छुपाता है दिखा कर मुझे सूरत अपनी पूछते क्या हो फ़िदा जान किया क्यूँ मैं ने इश्क़ अपना है दिल अपना है तबीअत अपनी महव-ए-नज़्ज़ारा हैं हम तो किसी जानिब छुप कर और वो आईने में देखा करे सूरत अपनी राहत-ओ-रंज का ग़ैरों पे असर क्या होगा रंज अपना है अलम अपना मसर्रत अपनी जान जाए तो चली जाए मगर ऐ क़ातिल तेरे कूचे ही में हो जाए शहादत अपनी सर में सौदा-ए-हवस और तकब्बुर न रहे चश्म-ए-बातिन से अगर देखे हक़ीक़त अपनी तार-ए-मल्बूस-ए-ख़ुदी क्यूँ रहें बाक़ी मेरे पंजा-ए-दस्त-ए-जुनूँ अपना है वहशत अपनी मर ही जाऊँ मैं अगर हिज्र में नाले न करूँ आह-ओ-ज़ारी से निकल जाती है कुल्फ़त अपनी दिल उसे दे के 'जमीला' मैं अबस क्यूँ रोता उस ने रखने को मुझे दी थी अमानत अपनी