फ़स्ल-ए-गुल की है आबरू हम से हम से है सैल-ए-रंग-ओ-बू हम से हुस्न-ए-फ़ितरत के राज़दार हैं हम फूल करते हैं गुफ़्तुगू हम से फ़र्श गुल पर ब-वक़्त-ए-सुब्ह-ए-नसीम आ के मिलती है बा-वज़ू हम से हम शहीद-ए-ग़म-ओ-अलम ही सही ज़िंदगी तो है सुर्ख़-रू हम से नाम साक़ी का हो गया वर्ना मय-कदे में है हा-ओ-हू हम से बज़्म-ए-रिंदाँ में अब भी बाक़ी है वक़अत-ए-बादा-ओ-सुबू हम से हम से है 'दर्द'-ओ-'दाग़' की अज़्मत हम से है नाम-ए-'आरज़ू' हम से सीखना हो तो सीख ले 'मंशा' कोई अंदाज़-ए-जुस्तुजू हम से