फ़सुर्दा हो के मयख़ाने से निकले यहाँ भी अपने बेगाने से निकले शफ़क़ का रंग गहरा कर गए और जो शो'ले मेरे काशाने से निकले ज़रा ऐ गर्दिश-ए-दौराँ ठहरना वो निकले रिंद मयख़ाने से निकले ग़म-ए-दिल का असर हर बज़्म में है सब अफ़्साने उस अफ़्साने से निकले किया आबाद वीराने को हम ने हमीं आबाद वीराने से निकले जो पहुँचे दार तक मंसूर थे वो हज़ारों रिंद मयख़ाने से निकले निकलते हम न ग़म-ख़ाने से 'अख़्तर' हसीं मौसम के बहकाने से निकले