फ़सुर्दा-दिल हैं ख़ुशी से बिछड़ गए हैं लोग ख़ुदा को भूल के मुश्किल में पड़ गए हैं लोग ग़म और दर्द के जंगल उगे हैं चेहरों पर नए ज़माने में कितने उजड़ गए हैं लोग सितम की आँधी ने मिस्मार कर दिया इन को ये लग रहा है जड़ों से उखड़ गए हैं लोग नजात की कोई सूरत नज़र नहीं आती दुखों के फंदे में ऐसे जकड़ गए हैं लोग थे राह-ए-रास्त पे जब तक पड़े थे पस्ती में बुलंदियों पे पहुँच कर बिगड़ गए हैं लोग भुला दिए हैं ख़ुलूस-ओ-वफ़ा के सारे सबक़ मफ़ाद ख़तरे में आया तो लड़ गए हैं लोग अजीब चीज़ अना का ख़ुमार भी है 'कमाल' निहत्ते हो के भी मैदाँ में अड़ गए हैं लोग