महव कर डालेगी इक दिन हुस्न की शोहरत मुझे ग़ैर तुझ को देखते हैं होती है हैरत मुझे इश्क़ की राहें हैं तय करनी किसी सूरत मुझे मंज़िलें दुश्वार हैं अल्लाह दे हिम्मत मुझे हश्र के दिन भी गुनाहों से न हूँगा शर्मसार मुँह छुपाने को मिलेगा दामन-ए-रहमत मुझे मैं पस-ए-दीवार बैठा हूँ सुकून-ए-क़ल्ब से जीते जी दुनिया में गोया मिल गई जन्नत मुझे कोई रहना चाहिए दस्त-ए-जुनूँ का मश्ग़ला ले तो आई है बयाबाँ में मिरी वहशत मुझे ज़िंदगी तो काविशों में ही कटी अपनी 'शमीम' क़ब्र में ले जाएगी अब ख़्वाहिश-ए-राहत मुझे