फ़ौजियों के सर तो दुश्मन के सिपाही ले गए हाथ जो क़ीमत लगी ज़िल्ल-ए-इलाही ले गए जुर्म मेरा सिर्फ़ इतना था कि मैं मुजरिम न था क़ैद तक मुझ को सुबूत-ए-बे-गुनाही ले गए अब वही दुनिया में ठहरे अम्न-ए-आलम के अमीं जो अमाँ की जा तक असबाब-ए-तबाही ले गए शिकवा-ए-जलवा-नुमाई सिर्फ़ उन के लब पे है जो तिरी महफ़िल में अपनी कम-निगाही ले गए तुम हरम से ले गए शब की सियाही और हम मय-कदे से भी ज़िया-ए-सुब्ह-गाही ले गए मैं इधर 'अख़लाक़' की तक़्सीम में मसरूफ़ था लोग उधर मेरी अदा-ए-कज-कुलाही ले गए