फ़ुरात-ए-चश्म में इक आग सी लगाता हुआ निकल रहा है कोई अश्क मुस्कुराता हुआ पस-ए-गुमान कई वाहिमे झपटते हुए सर-ए-यक़ीन कोई ख़्वाब लहलहाता हुआ गुज़र रहा हूँ किसी जन्नत-ए-जमाल से मैं गुनाह करता हुआ नेकियाँ कमाता हुआ ब-सू-ए-दश्त-ए-गुमाँ दे रहा है इज़्न-ए-सफ़र कनार-ए-ख़्वाब सितारा सा झिलमिलाता हुआ