फ़ुटपाथ पे लेटे हैं ख़ुद अपना बदन ओढ़े

फ़ुटपाथ पे लेटे हैं ख़ुद अपना बदन ओढ़े
धरती के बिछौने पर तारों का गगन ओढ़े

साया है न हम-साया मंज़िल है न रस्ता है
काँटों की सदारत में बैठे हैं चमन ओढ़े

फिर उन के तग़ाफ़ुल से आँखों में नमी आई
जीते रहे हम अब तक वा'दों का कफ़न ओढ़े

हालात ने हर शय की तासीर बदल डाली
सुनते हैं कि शबनम भी गिरती है अगन ओढ़े

बादल है न बिजली है मौसम न परिंदे हैं
रोती रही वीरानी हर सम्त गहन ओढ़े

यादों के सफ़र से जब लौटी तो गुमाँ गुज़रा
है मेरा बदन जैसे सदियों की थकन ओढ़े

अब अपनी तबाही का क्या उस से गिला 'नीलम'
हम को मिला अँधियारा सूरज की किरन ओढ़े


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