फ़ज़ा में बू-ए-गुल-ए-मुश्क-बार है कि नहीं हवा के दोष पे पैग़ाम-ए-यार है कि नहीं सवाल ये नहीं वो दोस्त-दार है कि नहीं सुख़न-शनास दिल-ए-ग़म-गुसार है कि नहीं करो न ज़िक्र सुबू ज़र-निगार है कि नहीं इलाज-ए-तिश्नगी-ए-बादा-ख़्वार है कि नहीं किसी गदा-ए-गुरसना को है ये होश कहाँ कोई निगार लब-ए-जूएबार है कि नहीं किया है अज़्म-ए-सफ़र अब नहीं तरद्दुद कुछ कहीं कोई शजर-ए-साया-दार है कि नहीं है उस्तुवारी-ए-आशिक़ की बस यही पहचान रह-ए-वफ़ा में रवाँ सू-ए-दार है कि नहीं अगर हो रिज़्क़ का आजिर पे इंहिसार तो ये ख़िलाफ़-ए-वा'दा-ए-परवरदिगार है कि नहीं चमन है जिन के तसर्रुफ़ में उन से ये पूछो लहू हमारा शरीक-ए-बहार है कि नहीं कशाकश-ए-रह-ए-हस्ती से तू परेशाँ है हक़ीक़तों से ये 'नज़मी' फ़रार है कि नहीं