तोहफ़ा-ए-ग़म भी मिला दर्द की सौग़ात के बा'द फिर भी दिल ख़ुश न हुआ इतनी इनायात के बा'द उम्र-भर ढूँडते फिरते ही रहे अपना वजूद ख़ुद से हम मिल न सके उन से मुलाक़ात के बा'द मैं हूँ जब तक तो समझ लीजिए सब कुछ है यहाँ कुछ न रह जाएगा दुनिया में मिरी ज़ात के बा'द कितनी तारीकियाँ गुज़रीं तो उजाला देखा हुस्न आया है नज़र कितने हिजाबात के बा'द ज़िंदगी तेरी तवाज़ो' भी मैं करता लेकिन न बचा कुछ भी लहू ग़म की मुदारात के बा'द हाथ आए हुए लम्हात न छोड़ो वर्ना कुछ न हाथ आएगा गुज़रे हुए लम्हात के बा'द आएगा दौर-ए-मसर्रत भी यक़ीनन 'फ़ाज़िल' क्या नहीं होती है दुनिया में सहर रात के बा'द