हुआ कुछ यूँ कि पछताए बहुत हैं तुम्हें सोचा शरमाए बहुत हैं जिसे फूलों के तोहफ़े हम ने भेजे उसी ने संग बरसाए बहुत हैं जो सच पूछो तो अब के यूँ हुआ है तेरे ग़म से भी उकताए बहुत हैं चुभे पाँव में काँटे याद आया कि हम ने पेल ठुकराए बहुत हैं और अब तो ग़म छुपाना आ गया है कि आँसू पी के मुस्काए बहुत हैं मुसलसल कर लिया पतझड़ को मेहमाँ ये मौसम दिल को रास आए बहुत हैं ये आँसू भी नवाज़िश हैं उसी की करम भी जिस ने फ़रमाए बहुत हैं मेरी चाहत भी सिक्कों में तुली है तही-दामन थे शरमाए बहुत हैं