शौक़ीन मिज़ाजों के रंगीन तबीअ'त के वो लोग बुला लाओ नमकीन तबीअ'त के दुख-दर्द के पेड़ों पर अब के जो बहार आई फल फूल भी आए हैं ग़मगीन तबीअ'त के ख़ैरात मोहब्बत की फिर भी न मिली हम को हम लाख नज़र आए मिस्कीन तबीअ'त के अब के जो नशेबों में पर्वाज़ हमारी है हम कौन से ऐसे थे शाहीन तबीअ'त के देखी है बहुत हम ने ये फ़िल्म तअल्लुक़ की कुछ बोल तकल्लुफ़ के कुछ सीन तबीअ'त के इस उम्र में मिलते हैं कब यार नशे जैसे दारू की तरह तीखे कोकीन तबीअ'त के इक उम्र तो हम ने भी भरपूर गुज़ारी है दो-चार मुख़ालिफ़ थे दो-तीन तबीअ'त के तुम भी तो मियाँ 'फ़ाज़िल' अपनी ही तरह के हो दीं-दार ज़माने के बे-दीन तबीअ'त के